भोपाल । प्रदेश के धार जिले के कारम बांध के टूटने के कारणों के जिल गठित जांच दल ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बांध में पानी भरने में जल्दबाजी की गई। जांच दल ने रिपोर्ट में कहा है कि बांध के निर्माण में स्थानीय स्तर पर भारी लापरवाही बरती गई है। अव्वल तो बांध में पानी भरने में जल्दबाजी की गई। वहीं बांध की ऊंचाई ज्यादा है, इसमें अनुभवी इंजीनियरों को लगाया जाना था, जो नहीं किया गया। वैसे दल ने निर्माण कार्यों में गड़बड़ी की ओर इशारा किया है, पर ऐसा भी बताया जा रहा है कि रिपोर्ट में ज्यादा खुलासे नहीं किए गए हैं, जो ठेकेदार और अधिकारियों को क्लीनचिट देने की कोशिश का हिस्सा है। सूत्रों के अनुसार जांच दल ने बांध की पाल (दीवार) में कई खामियां गिनाई हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि बांध की पाल काली मिट्टी से तैयार की गई है लेकिन उसे ऊपर से पत्थर एवं मुरम से ढंका (कवर) नहीं गया। मिट्टी में कंकर भी थे। जिससे पानी भरने पर मिट्टी में कटाव शुरू हो गया और बांध की पाल से पानी रिसने लगा। जांच रिपोर्ट में इसके अलावा भी कई बिंदु शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि करीब सौ करोड़ रुपये (परियोजना लागत 304 करोड़ रुपये) की लागत से धार जिले की कारम नदी पर यह बांध बनाया जा रहा है। 45 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) क्षमता वाले इस बांध में 15 एमसीएम ही पानी भर पाया था कि 11 अगस्त को पाल से पानी रिसने लगा। किसी अनहोनी की आशंका के चलते राज्य सरकार को बांध से पानी निकालने का निर्णय लेना पड़ा। 13 से 14 अगस्त की रात तक पाल के बगल से बायपास चैनल बनाकर पानी निकाला गया। इसके लिए धार और खरगोन जिले के 18 गांव खाली कराने पड़े थे। बांध से पानी निकाले जाने के बाद 15 अगस्त को सरकार ने जल संसाधन विभाग के अपर सचिव आशीष कुमार की अध्यक्षता में जांच दल गठित किया था। जिसमें मुख्य अभियंता दीपक सातपुते, संचालक बांध सुरक्षा अनिल सिंह सहित एक अन्य अधिकारी शामिल हैं। दल ने मौके का निरीक्षण किया था।  11 अगस्त को रक्षाबंधन था। उसी दौरान बांध में जलस्तर बढ़ रहा था। फिर भी ठेकेदार के कर्मचारी और सरकारी कर्मचारी बांध छोड़कर चले गए थे। यही कारण था कि बांध से पानी निकालने के लिए दूसरे विकल्प तलाश करने पड़े।विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि मैदानी स्तर पर बांध निर्माण की देखरेख का जिम्मा संभालने वाले अधिकारियों की भी लापरवाही सामने आई है। उन्होंने लगातार निगरानी नहीं की। जबकि उन्हें तय मापदंड के अनुसार हर स्तर पर बारीकी से निगरानी करनी थी।