उज्जैन. मध्य प्रदेश के उज्जैन में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी कुछ परंपराएं हैं जो इसे बहुत खास बनाती है। ऐसी ही एक परंपरा है यहां निकाली जाने वाली भगवान महाकाल की सवारी।

सावन मास के प्रत्येक सोमवार और भाद्रपद मास के प्रथम 2 सोमवार को भगवान महाकाल पालकी में बैठकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इस दौरान शहरवासी भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों सड़कों पर खड़े रहते हैं। 22 अगस्त, सोमवार को भाद्रपद मास की दूसरी व अंतिम सवारी निकाली गई। इसे शाही सवारी कहते हैं। आगे तस्वीरों में कैसे शाही ठाठ-बाठ से भगवान महाकाल ने नगर भ्रमण किया, साथ ही जानिए भगवान महाकाल से जुड़ी खास बातें.

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मात्र महाकाल ही दक्षिणमुखी हैं। दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज हैं। इसलिए ये स्थान तंत्र-मंत्र के लिए बहुत खास माना जाता है।

भगवान महाकाल की रोज सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्वप्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। कहते हैं कि पुरातन समय में मुर्दे की राख से भस्म आरती की जाती थी।

महाकाल मंदिर तीन मंजिलों में विभाजित है। सबसे नीचे महाकाल ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इसके ऊपर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है।

महाकाल मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर के कपाट साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर 24 घंटे के लिए ही खुलते हैं।

महाकाल मंदिर गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के साथ ही शिव परिवार भी विराजित है। यहां गणेशजी, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों के भी दर्शन होते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। इसके अनुसार एक राक्षस का वध करने के लिए स्वयं महादेव यहां प्रकट हुए थे।

धर्म ग्रंथों में जो 12 ज्योतिर्लिंग बताए गए हैं, उनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान तीसरा है। इसे महाकाल वन में स्थित होना बताया जाता है।

महाशिवरात्रि के मौके पर भगवान महाकाल को कई क्विंटल वजनी सेहरा पहनाया जाता है। इस दिन दूल्हे के रूप में इनका विशेष श्रृंगार भी किया जाता है।

महाकाल मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व 9 दिन पहले ही शुरू हो जाता है, इसे शिव नवरात्रि कहते हैं। इन 9 दिनों में भगवान महाकाल का अलग-अलग रूपों में श्रृंगार किया जाता है।