सात दिवसीय श्रीराम महायज्ञ एवं संगीतमय श्रीराम कथा का हुआ समापन
 

होशंगाबाद। बांद्राभान रोड माँ नर्मदा के तट द्वादश ज्योर्तिलिंग धाम में चल रहे श्रीराम महायज्ञ एवं श्रीराम कथा के सातवें दिन समापन अवसर पर कथा सुनाते हुए प्रख्यात मानस कथाकार प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि निशाद राज ने लक्ष्मण जी को तीर्थराज प्रयाग की महिमा सुनाई। कथा में महाराज श्री ने श्रीराम से मिलने भरत आश्रम पहुंचे, और प्रमाण करके श्रीराम को हृदय से लगा लिया, स्नेह किया और आश्रम लाए। अब करि कृपा देहू वर हेहू, निज पद सद सिज सहज सनेहू हमारा। अर्थात जीवन धन्य हो गया, तीर्थ राज प्रयाग में भगवान राम रात्रि विश्राम किया। प्रात:काल त्रिवेणी में स्नान किये और भरत से पूछा हम किधर जाएं। मनुष्य को स्मृति अथवा पुराणों के पथ का अनुगमन करना चाहिए। मन मुखी मार्ग नहीं पडऩा चाहिए। जीवन के कुछ सिद्धांत होने चाहिए। जीवन का कुछ नियम होना चाहिए। बिना नियम के हवा भी नही बहती। बिना नियम के सूर्य भगवान भी नहीं चलते। बिना नियम के समुद्र महाराज भी नहीं रहते। बिना नियम के चंदा मामा भी कहा दिखते हैं। सबका नियम और समय निश्चत है। ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है, बंदा न जान, तेरा क्या विचार है। प्रेमभूषण महाराज ने कहा हम भी नियमबद्ध हों, जीवन नियम में बंधा रहेगा तो आनंद आएगा। भगवान राम प्रात:काल जगे और भरत से पूछा। भरत जी ने कहा प्रभु आपको सब मार्ग सुगम है। मैं क्या कहूं, फिर भी शिष्यों को बुलाए भरत जी ने चार वेद भगवान राम से कहा जाईए मार्गदर्शन कीजिए, परमात्मा मार्ग में लोगों को आनंदित करें। 
लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा देखा जाएगा, तुम्हे अपना बना बैठे, जो होगा देखा जाएगा:- प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि भगवान की पूजा अपनी पूजा से भी सरल है। अपनी पूजा में कितना समय लगता है। स्नान करने से लेकर बाहर निकलने का समय लगता है। महाराज जी ने कहा मैंने देखा है कि लोगों को पूजा करने में दो-दो घंटे लग जाते हैं। मेरा सभी श्रद्धालुओं से निवेदन है कि दशांत चौबीस मिनट भगवान के सामने बैठो कुछ मत करो केवल बैठो, भगवान को दिखो वो आपको देखें आप उनको देखों, चौबीस मिनट देखा देखी करने से प्रेम बढ़ जाएगा। अपने आप प्रीति प्रभु से बढ़ जाएगी।
प्रेमभूषण महाराज ने आगे कथा सुनाते हुए आगे कहा कि जातक जन्म भर स्वाती की एक बूंद की प्रतीक्षा करे और मांगने पर लाख पहाड़ दे, पत्थर उड़ेलता रहे, स्वाति नक्षत्र तो भी उसकी प्रीति कम नहीं होती। स्वर्ण जब आग में तपता है तो उसकी चमक जागृत हो जाती है। स्वामी के श्री चरणों में स्नेह तपेंगे उतना बढ़ेगा, इसलिये हमारा यह प्रेम बढऩा चाहिए। कम न होना चाहिए। भगवान के प्रति प्रेमभक्त के हृदय में बढऩा चाहिए। कब बढ़ेगा जब भगवान की सेवा करके, भगवान से हम कुछ नहीं चाहेंगे तो भगवान से प्रेम बढ़ेगा और जहां चाहेंगे प्रेम कम होगा। समाज, परिवार, व्यक्तिगत जीवन, समष्टिगत जीवन अथवा वैश्विक जीवन कहीं भी हम आप रहें किसी से चाहेंगे प्रेम घटेगा। कथा स्थल पर चल रहे नौ कुंडीय श्रीराम महायज्ञ की पूर्णाहुति के साथ समापन किया। प्रख्यात यज्ञाचार्य पं. अरविन्दाचार्य महाराज के मार्गदर्शन में प्रतिदिन चल रहे महायज्ञ विद्वान ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ को संपन्न कराया। कथा के अवसर समाजसेवी वीरेन्द्र मालवीय, मंडल अध्यक्ष विकास नारोलिया सहित अनेक श्रद्धालुगण मौजूद थे। अंत में महाआरती के साथ समापन किया।