नई दिल्‍ली । भारत को कृषि प्रधान देश इसतरह ही नहीं कहा गया है। तमाम एक्‍सपर्ट और आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अगर भारतीय कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचता है, तब इसका खामियाजा पूरी अर्थव्‍यवस्‍था को होता है। इस पर ताजा चिंता मानसून को लेकर है, जो अभी तक उम्‍मीद के मुताबिक नहीं दिखा है। भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए मानसून इसलिए भी काफी अहमियत रखता है, क्‍योंकि यहां सालभर में होने वाली कुल बारिश का 70 फीसदी पानी सिर्फ मानसून में गिरता है। इतना ही नहीं 60 फीसदी कृषि योग्‍य भूमि की सिंचाई भी मानसून की बारिश से ही होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल फरवरी-मार्च में ही तापमान बढ़ने से पहले ही कृषि क्षेत्र पर मुसीबत आ चुकी है, अब खराब मानसून को झेलना भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए किसी आपदा से कम नहीं होगा। 
जानकार का कहना है कि भारत की करीब आधी आबादी (65 करोड़ लोग) प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हैं। अगर मानसून खराब रहा और बारिश कम हुई तब निश्चित तौर पर अनाज की पैदावार भी कम होगी और महंगाई एक बार फिर अपना सिर उठाएगी। हालांकि, अगर मानसून बेहतर रहा तब खाद्य सुरक्षा और खाद्य महंगाई दोनों मोर्चे पर राहत मिल सकती है। 
इस साल मार्च महीने में औसतन ज्‍यादा तापमान रहा जिसका सीधा असर रबी की फसलों पर पड़ा है। इससे गेहूं का कुल उत्‍पादन 5 फीसदी घटने का अनुमान है। पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्‍पादन का अनुमान था, लेकिन तापमान बढ़ने की वजह से इस 5 फीसदी घटाकर 10.64 करोड़ टन कर दिया गया। कम उत्‍पादन की वजह से ही केंद्र की मोदी सरकार को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा है। 
वहीं मौस‍म विज्ञानियों ने साल लगातार चौथी बार मानसून के सामान्‍य रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन, जून का पखवाड़ा काफी सूखा गया है और इसने मानसून की बारिश को लेकर डर पैदा कर दिया। कम बारिश होने की वजह से ही अभी तक धान की रोपाई शुरू नहीं हुई है। अगर यह आशंका सच साबित हुई, तब देश में खाद्य सुरक्षा पर संकट आने के साथ महंगाई का जोखिम भी बढ़ सकता है। 
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्‍युंजय महापात्रा ने इस साल बेहतर बारिश का दावा किया है. उन्‍होंने कहा कि मानूसन अभी भले ही सुस्‍त है लेकिन जल्‍द ही यह रफ्तार पकड़ेगा। 17 जून को देशभर में बारिश का घाटा 18 फीसदी रहा, जो 11 जून को 43 फीसदी था। अभी पूर्वी और मध्‍य भारत में बारिश ठीक हो रही है और 23 जून के बाद उत्‍तर भारत में भी हालात सामान्‍य हो जाएंगे। इंडियन एग्रीकल्‍चर रिसर्च इंस्‍टीट्यूट के प्रधान वैज्ञानिक और प्रोफेसर विनोद सहगल ने कहा, अभी चिंता की कोई बात नहीं है। जून के अंत तक बारिश की कमी पूरी होगी और जुलाई में हम बेहतर बारिश की उम्‍मीद कर रहे हैं। हालांकि, उन्‍होंने कहा कि अगर जुलाई के पहले सप्‍ताह तक अच्‍छी बारिश नहीं हुई और डेफिसिट में बढ़ोतरी होती है, तब खरीफ की फसल पर संकट आ सकता है। पहले ही भीषण तापमान ने जमीन की नमी को खत्‍म कर दिया है। लिहाजा अगर अच्‍छी बारिश नहीं होती है, तब जमीन की फर्टिलिटी पर भी असर पड़ेगा। 
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्‍यों के किसान सिंचाई के लिए बारिश पर ज्‍यादा निर्भर नहीं करते, क्‍योंकि यहां ट्यूबवेल, नहर जैसी सुविधाओं की भरमार है। पजाब के 98 फीसदी किसानों के पास सिंचाई सुविधा है, लेकिन देश के अन्‍य राज्‍यों पर खराब मानसून का गंभीर असर पड़ेगा है। महाराष्‍ट्र के किसानों को मानसून की बारिश का सबसे ज्‍यादा इंतजार रहता है। गेहूं की पैदावार पहले ही घट चुकी है और अगर चावल की बेहतर उपज चाहिए, तब मानसून की बारिश का सामान्‍य से अधिक रहना बेहद जरूरी है। 
निजी एजेंसी के मौसम विज्ञानी के अनुसार, जून के पहले हाफ में बारिश अनुमान से 80 फीसदी कम रही है, जो निश्‍चित तौर पर पैदावार को प्रभावित करेगी। अब दूसरा हाफ भी उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। कुछ रिपोर्ट तो यहां तक कहती हैं कि अगले दो महीने तक बारिश अनुमान से कम ही रहेगी। कुलमिलाकर यह चिंताजनक तस्‍वीर है।