भोपाल ।  भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद से हटा दिए गए आरपीएस तिवारी के खिलाफ फाइल दबाने के आरोप लगे हैं। यह फाइल करोड़ों रुपये के ठेके से जुड़ी है। अब इस फाइल को वापस पाने के लिए एमपी स्टेट कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन व भोपाल सहकारी दुग्ध संघ को जोर लगाना पड़ रहा है। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के नए सीईओ ने आरपीएस तिवारी को पत्र लिखकर फाइल जमा कराने को कहा है। तिवारी का तबादला 12 अगस्त को किया था। उन्‍होंने ठेके से जुड़ी फाइल गुरूवार शाम तक जमा नहीं की है।

इसलिए अहम है फाइल

भोपाल सहकारी दुग्ध संघ को दूध का परिवहन करने, उसकी प्रोसेसिंग करने, उसकी पैकिंग करने व उसका वितरण करने के लिए करीब 600 से अधिक श्रमिकों की जरूरत है, जो कि वर्तमान में काम कर रहे हैं। अभी ये श्रमिक मेसर्स गोपाल विश्वास नामक फर्म के अधीन काम कर रहे हैं। यह फर्म जनवरी 2011 से संघ में जमी है और इसे भोपाल सहकारी दुग्ध संघ दूसरे दुग्ध संघों की तुलना में करीब 10 प्रतिशत तक अधिक सेवा शुल्क का भुगतान किया जाता रहा है। जबकि इसी काम के बदले दूसरे दुग्ध संघों में श्रमिक ठेकेदारों को एक से लेकर तीन प्रतिशत सेवा शुल्क भुगतान किया जा रहा है। भोपाल दुग्ध संघ हर माह श्रमिकों को डेढ़ से दो करोड़ रुपये का वेतन भुगतान करता है। इस राशि पर अधिक सेवा शुल्क के हिसाब से अब तक करोड़ों रुपये का भुगतान ठेकेदार को किया जा चुका है। इसकी वजह से दुग्ध संघ को अभी तक करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। दुग्ध संघ से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है, क्योंकि उक्त ठेकेदार का ठेका कुछ अधिकारियों ने बार-बार बढ़ाया था, जो कि 2014 व उसके बाद 2018 में ख़त्म हो जाना चाहिए था। उक्त ठेकेदार ने दो से तीन बार ठेका अवधि खत्म करने के खिलाफ सहकारिता कोर्ट से स्थगन भी लिया था। अब इस ठेके को नए सिरे से करने के लिए टेंडर बुलाए गए हैं, जिसकी फाइल ही गायब है।

टेंडर शर्तों में हेराफेरी के आरोप

सीईओ पद से हटाए गए आरपीएस तिवारी के खिलाफ आरोप है कि उनकी अवधि में जारी किए गए श्रमिक ठेके की टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी की गई है। इसका खुलासा तिवारी के खिलाफ बिठाई जांच में हुआ है। यह जांच एमपी स्टेट कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन के प्रबंध संचालक तरुण राठी ने 12 अगस्त को बिठाई है। जिसमें तिवारी के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने टेंडर में ऐसी शर्ते शामिल कीं, जिससे कम से कम निविदा आएं। इसका फायदा एक ठेकेदार को मिल सकता है।