भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसे भादों या भाद्रपद अमावस्या भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। चूंकि भाद्रपद मास भगवान कृष्ण को समर्पित है, इसलिए इससे भाद्रपद अमावस्या का महत्व भी बढ़ जाता है। 

भाद्रपद अमावस्या शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11:57 से दोपहर 12:48 तक 
 
भाद्रपद अमावस्या का महत्व

हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद अमावस्या की पूर्व संध्या पर प्रार्थना करने से पिछले पापों से छुटकारा मिलता है, और मन से दुर्भावनापूर्ण भावनाएं दूर हो जाती हैं। भाद्रपद अमावस्या पर पितरों की पूजा करने से पितर प्रसन्न होते हैं। भाद्रपद अमावस्या को पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं। कुश का अर्थ घास है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन नदी स्नान के पश्चात तर्पण करने और पितरों के लिए दान करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस अमावस्या के दिन तर्पण करने और पिंडदान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। जब पितृ यानी पूर्वज खुश होते हैं तो उनका आशीर्वाद पूरे परिवार पर बरसता है और घर में खुशहाली आती है। 

भाद्रपद अमावस्या की पूजा विधि 
भाद्रपद अमावस्या के दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के उपरांत बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। पितरों की शांति के लिए गंगा तट पर पिंडदान करें। पिंडदान के बाद किसी गरीब या जरूरतमंद को दान दक्षिणा दें। यदि कालसर्प दोष से पीड़ित हैं तो भाद्रपद अमावस्या के दिन इसका छुटकारा पाने के लिए पूजा अर्चना करें। अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें।