नई दिल्ली । मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। नए राष्ट्रपति को 25 जुलाई तक शपथ लेनी है। एनडीए और विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए नामों का ऐलान हो चुका है। एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू नामांकन कर चुकी हैं। विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा सोमवार को नामांकन भरेंगे। राष्ट्रपति के लिए वोट में देश भर के 543 लोकसभा सांसद, 233 राज्यसभा सांसद और 4,033 विधायक राष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करेंगे हैं। इस चुनाव के लिए सांसदों के वोटों का कुल मूल्य 5,43,200 है और विधायकों के वोटों का कुल मूल्य 5,43,231 है। कॉलेजियम में राष्ट्रपति पद के लिये कुल 1086431 वोटों से जीत-हार का फासला तय होगा। हालांकि एनडीए लोकसभा और राज्यसभा में सबसे बड़ा समूह है, फिर भी उसे जीत हासिल करने के लिए छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन की जरूरत है। भाजपा 18 राज्यों में सत्तारूढ़ में है। उसे 1086431 मतों में से 5,32,351 मत मिलना तय माना जा रहा है। जबकि जीत के लिए 5,43,216 वोट चाहिए। आंकड़ों का यह गणित पहली नजर में भले ही मुर्मू की जीत के लिए राह आसान बना रहा हो। विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाकर भाजपा और मोदी की रणनीति पर पेंच फंसा दिया है। 
यशवंत का नाम आगे बढ़ाना रणनीतिक फैसला
विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति चुनाव के लिए यशवंत का नाम आगे बढ़ाना भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा करने का फैसला माना जा रहा है। यशवंत सिन्हा 26 साल भाजपा में रहे। महत्वपूर्ण केन्द्रीय मंत्री और अटल, आडवाणी के विश्वासपात्र रहे है। उनका आज भी भाजपा के कई शीर्ष नेता समर्थन करते हैं। अटल-आडवाणी की भाजपा और मोदी-शाह की भाजपा के कार्यकाल में कई नेता शिकार बने हैं। वे आज खुलकर विरोध करने की स्थिति में भले ही न हों, मगर अंदरखाने में असंतोष जाहिर करते रहे हैं। इन लोगों में वर्तमान विधायक-सांसद भी शामिल है। सत्ता की मजबूरी इन लोगों को भले ही भाजपा में रखे हो, मगर मौजूदा दौर में वह नाराज है। राष्ट्रपति चुनाव में मतदान के समय ये विधायक और सांसद यशवंत सिन्हा के साथ जाआपसी संबंधों एवं पुरानी विचारधारा को लेकर उन्हें वोट कर सकते हैं। 
व्हिप जारी न होने से आसान होगा
राष्ट्रपति चुनाव के लिए व्हिप जारी नहीं किया जाता है। सांसदों और विधायकों को अपनी पसंद से वोट करने का अधिकार होता है। ऐसा माना जाता है कि सांसद/विधायक आत्मा की आवाज पर पसंद के उम्मीदवार को वोट करते हैं। व्हिप जारी न होने से एनडीए में सेंध लग सकती है। इस स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति पद का चुनाव यशवंत सिन्हा के विपक्षी उम्मीदवार होने से मोदी-शाह की चिंता को बढ़ा दिया है।
झारखंड-बिहार पर नजर
द्रौपदी मुर्मू का संबंध झारखंड से है, तो सिन्हा का कैरियर भी झारखंड से ही शुरू हुआ था। ऐसे में दोनों के लिए झारखंड के वोट अहम हैं। अभी तक एनडीए मानकर चल रहा है कि मुर्मू के आदिवासी होने की वजह से झामुमो साथ आएगी, मगर यशवंत सिन्हा के झारखंड, बिहार भाजपा से 26 साल जुड़े रहने, अटली-आडवाणी के विश्वसनीय नेता होने से एनडीए का यह सपना फीका भी पड़ सकता है। भाजपा के साथ सरकार में शामिल जदयू तथा एनडीए को समर्थन दे रहे राजनैतिक दलों के सांसद-विधायक मतदान करते समय गच्चा दे सकता है। नीतीश ने मुर्मू के समर्थन में जिस तरह की लेटलतीफी दिखाई है, वह कुछ और इशारे कर रही है। 
वहीं भाजपा के अन्दरखाने से जो सहानुभूति यशवंत सिन्हा के पक्ष में देखने को मिल रही है। इससे राष्ट्रपति पद का चुनाव रोचक हो गया है। पक्ष एवं विपक्ष के बीच अंतर कम होने से ऊँट किसी भी करवट पर बैठ सकता है। 

अर्न्तआत्मा की आवाज पर राष्ट्रपति बने थे गिरी
तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की असमय मृत्यु होने से 1969 में राष्ट्रपति का चुनाव हुआ। तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने अपने पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा। इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री थी। वह वी.वी. गिरी का राष्ट्रपति बनाना चाहती थी। वहीं कांग्रेस पार्टी ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नीलम संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया। 
इंदिरा गांधी का संगठन के साथ तालमेल नहीं बैठ रहा था। अत: इंदिरा गांधी ने वीवी गिरी को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में विपक्षी उम्मीदवार के रूप में उतारा। 
मतदान के पूर्व इंदिरा गांधी ने सभी मतदाताओं से अर्न्तआत्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की। इस अपील का असर हुआ। वीवी गिरी राष्ट्रपति पद के चुनाव में मामूली अंतर से चुनाव जीत गए थे।