लखनऊ । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में पिछले 10 साल में ओबीसी कोटे से किसको कितनी नौकरी मिली है, इसकी रिपोर्ट तलब की है। योगी सरकार यह आंकड़ा जानना चाहती है कि पिछले 10 सालों में यानी 2010 से 2020 के बीच ओबीसी कोटे से जो भी नियुक्ति हुई उसमें कौन-कौन सी जातियां शामिल हैं। मुख्यमंत्री की तरफ से ओबीसी की उपजातियों का भी विवरण मांगा गया है। आज होने वाली बैठक में 83 विभागों ने अपने आंकड़े पेश किए।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में पिछले 10 साल में दी गई नौकरियों में ओबीसी उपजातियों का विवरण मांगा गया है। आज सभी 83 विभाग मुख्यमंत्री के सामने यह आंकड़ा पेश करेंगे। दरअसल, योगी सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी वर्ग और इसके अंतर्गत आने वाली उपजातियों को पिछले 10 साल में दी गई नौकरियों का आंकड़ा इकठ्ठा कर रही है। सरकार की तरफ से जो आंकड़े मांगे गए हैं, उसमें कुल कितने पद स्वीकृत किए गए हैं, कितने पद भरे गए हैं, ओबीसी के लिए कितने पद निर्धारित थे, ओबीसी वर्ग से कितने पद भरे गए, सामान्य वर्ग में कितने ओबीसी चयनित हुए, भर्ती में कितने ओबीसी चयनित हुए, ओबीसी कोटा पूरा हुआ या नहीं, समूह ग से ख तक ओबीसी उपजातियों के लिहाज से कर्मचारियों की संख्या कितनी है और कितने कार्मिक ओबीसी वर्ग के उपजाति से हैं?
कोशिश यह भी जानने की है कि ओबीसी वर्ग की उपजातियों को सरकारी नौकरियों में कितना प्रतिनिधित्व मिला है। योगी सरकार के इस कदम को 2024 के लोकसभा उपचुनाव की तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है। साथ ही इसका एक सिरा सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट से भी जुड़ता है, जिसे अभी तक लागू नहीं किया गया। इस मुद्दे को पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर और मौजूदा सरकार में मंत्री संजय निषाद भी उठाते रहे हैं।
योगी सरकार ने  जस्टिस राघवेंद्र की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2021 में शासन को सौंप दी थी। कमेटी ने ओबीसी को तीन वर्गों में बांटने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट में ओबीसी को पिछड़ा, अति पिछड़ा और सबसे पिछड़ा में बांटने की सिफारिश की गई थी। साथ ही रिपोर्ट में कहा गया था कि आरक्षण का लाभ कुछ ही जातियों के बीच सिमट कर रह गया है।