भोपाल । राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के चारों महानगरों की लोकसभा सीटें जीतना कांग्रेस के लिए सपना बन गया है। कांग्रेस को इन दोनों सीटों पर दमदार प्रत्याशी ही नहीं मिल रहे हैं। भोपाल और इंदौर में बीते 25 सालों से भाजपा लगातार लोकसभा चुनाव जीतती आ रही है। भोपाल से पिछली बार पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा था पर वह भी भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (पहली बार मैदान में उतरीं) से तीन लाख 64 हजार मतों से हार गए थे। वहीं, इंदौर में कांग्रेस के पंकज संघवी भाजपा के शंकर लालवानी से पांच लाख 47 हजार मतों से हारे थे। जबलपुर में 1996 और ग्वालियर में 2007 से भाजपा जीत रही है। इंदौर में वर्ष 1984 में कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी जीते थे। इसके बाद 1989 से लगातार भाजपा के कब्जे में यह सीट रही है। भाजपा की कद्दावर नेता सुमित्रा महाजन वर्ष 1989 से लेकर 2019 तक यहां से लोकसभा सदस्य रही हैं। यही स्थिति भोपाल की है। यहां से आखिरी बार कांग्रेस प्रत्याशी केएन प्रधान 1984 में जीते थे। इसके बाद यहां भी 1989 से लगातार यहां भाजपा जीतती रही है। भोपाल सीट में भोपाल और सीहाेर सम्मिलित है। भाजपा यहां उमा भारती और कैलाश जोशी जैसे बड़े नेताओं को चुनाव लड़ा चुकी है। दोनों जीते भी थे। उनके सामने यहां कांग्रेस की दाल नहीं गली। जबलपुर सीट से वर्ष 2004 यानी पिछले चार बार से राकेश सिंह जीतते रहे हैं। इन सीटों पर भाजपा की बड़े अंतर से जीत की वजह से भी कांग्रेस नेता अब इन सीटों से चुनाव लड़ने से बच रहे हैं। दरअसल, बड़े शहरों में भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं। अन्य राज्यों के लोग भी यहां बड़ी संख्या में रहते हैं, जिन पर केंद्रीय मुद्दे अधिक प्रभावी रहते हैं। माना जाता है कि शहरों में व्यापारी और प्रभुत्व वर्ग के लोग अधिक रहते हैं जिनका झुकाव भाजपा की तरफ शुरू से रहा है। इस बारे में प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा आशीष अग्रवाल का कहना है कि कांग्रेस का विकल्प तलाशने की शुरुआत बड़े शहरों से हुई। विपक्ष की जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टीकरण की राजनीति को लोग समझ गए हैं। अब तो महानगर ही नहीं हर जगह भाजपा है। कांग्रेस ने तो जनता की परवाह की और न ही अपने कार्यकर्ताओं की। वहीं प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि इंदौर, भोपाल सहित जहां-जहां भाजपा लंबे समय से जीतती रही है वहां धर्म की अफीम भाजपा के लिए सार्थक साबित हुई है। यह कहना सही नहीं है कर्मचारियों के मत भाजपा को अधिक मिलते हैं। डाक मत पत्रों में भाजपा हमेशा जीतती रही है। हम तो ईवीएम से हार रहे है।