मध्य प्रदेश में गुजरात, छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा महंगी है बिजली
जबलपुर । मध्यप्रदेश में भरपूर उत्पादन होने के बाद भी यहां बिजली के दाम पड़ोसी राज्यों की तुलना में अधिक हैं। इसका नुकसान उपभोक्ताओं के साथ व्यापारियों को भी उठाना पड़ रहा है। व्यापारियों की उत्पादन लागत अन्य राज्यों की तुलना में अधिक आ रही है, जिससे बाजार में माल बेचने में मुश्किल हो रही है। बिजली कंपनी ने आठ अप्रैल से बिजली के दाम में औसत 3.25 प्रतिशत की वृद्धि की है। व्यापारियों के संगठन महाकोशल चैंबर आफ कार्मस एंड इंडस्ट्री का दावा है कि छत्तीसगढ़ और गुजरात में जहां उद्योगों को बिजली पांच से छह रुपये प्रति यूनिट मिल रही है, वहीं मप्र में एक यूनिट बिजली की कीमत औसत 11 रुपये है। वहीं घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को औसत 5.78 रुपये प्रति यूनिट बिजली दी जा रही है, जबकि छत्तीसगढ़ और गुजरात में चार रुपये और 3.42 रुपये प्रति यूनिट पड़ती है। संगठन ने इस संबंध में मप्र विद्युत नियामक आयोग को अन्य राज्यों का तुलनात्मक अध्ययन कर डेटा उपलब्ध कराते हुए बिजली के दाम बढ़ाने का विरोध किया है।
महाकोशल चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के मानसेवी मंत्री शंकर नाग्देव ने कहा कि मध्यप्रदेश में औद्योगिक, घरेलू, वाणिज्य बिजली छत्तीसगढ़ और गुजरात से 25 से 35 प्रतिशत महंगे मूल्य पर मिल रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में बिजली के दाम ज्यादा होने की वजह से व्यापार प्रभावित हो रहा है। इनके अनुसार जबलपुर में करीब दो हजार से ज्यादा उच्च दाब कनेक्शनधारी उपभोक्ता हैं। इन्हें एक ओर महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है तो वहीं आए दिन सप्लाई बाधित होने से उद्योगों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ रहा है। फेडरेशन आफ मप्र चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष हिमांशु अग्रवाल ने कहा कि अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि जो वस्तु बहुतायत में होती है उसके दाम गिर जाते हैं, लेकिन मप्र की बिजली कंपनी ने अर्थशास्त्र के सिद्धांत को बदल दिया है। यहां भरपूर बिजली होने के बावजूद उपभोक्ताओं को महंगे दामों में बेची जा रही है। फिजूल खर्च और बेतहाशा विद्युत खरीदी अनुबंध करने से कंपनियों को सालाना करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसकी भरपाई हर वर्ग को बिजली का ज्यादा दाम चुकाकर करनी पड़ रही है। बिजली मामलों के विशेषज्ञ राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि बिजली कंपनियों को अपने खर्च में कटौती कर शार्ट टर्म के विद्युत खरीदी करार करने चाहिए, ताकि वित्तीय बोझ कम हो।