चेहरा और रणनीति बदलने के बजाए उम्मीदवार चयन पर जोर
भोपाल । भाजपा और कांग्रेस प्रदेश में विधानसभा समर-2023 जीतने जोर-आजमाइश कर रही हैं। प्रदेश में सरकार का चेहरा और हिमाचल, कनार्टक में हार के बाद भाजपा की रणनीति बदलने की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन भाजपा के थिंक टैंक का फोकस इन्हें बदलने पर नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की पसंद के प्रत्याशी चयन पर है। सही प्रत्याशी का चयन ही पार्टी को सत्ता दिलाएगा। कार्यकर्ता की नाराजगी भी दूर होगी। रणनीति और चेहरा बदलने से स्थिति और ज्यादा खराब होने का अंदेशा है। टिकट के लिए राजनीति के जानकारों का मानना है विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। अब संगठन, सरकार का चेहरा और रणनीति बदलना ठीक नहीं रहेगा। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूर्व निर्धारित रणनीति में आंशिक फेरबदल कर चुनाव में अपेक्षा अनुरूप नतीजे हासिल करने के लिए मंथन कर रहा है। भाजपा में थिंक टैंक माने जाने वाले नेता भी मान रहे हैं प्रदेश में हवा कुछ विपरीत है। हवा का रुख बदलने का दारोमदार उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर रहेगा। उम्मीदवारों के चयन में कार्यकर्ताओं की पसंद-नापसंद का ध्यान रखना होगा। पैराशूट उम्मीदवार उतारने से बचना होगा। ग्वालियर-चंबल में टिकट को लेकर सबसे अधिक घमासान मचने की आशंका है। इसलिए अंचल में टिकट वितरण अहम होगा।
कांग्रेस का पहले से ही फोकस उम्मीदवारों का चयन पर है। कांग्रेस दावा कर रही है इस बार किसी नेता की सिफारिश और संबंधों पर टिकट नहीं दिए जाएंगें। पार्टी के सर्वे में, जो टाप पर होगा, उसी को टिकट मिलेगा। पिछले एक साल से कांग्रेस प्रदेश के सभी विधानसभा में सर्वे के तीन राउंड करा चुकी है। कांग्रेस के रणनीतिकार भाजपा के मुकाबले अपनी संगठनात्मक कमजोरी से वाकिफ हैं। इसलिए प्रदेश नेतृत्व ने पहले से ही उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर फोकस किया है।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा भी सहमत हैं कि इस बार व्यक्ति आधारित चुनाव होगा। उनका कहना है यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा में सफल रणनीतिकार हैं। इनके बूते पर ही भाजपा सत्ता के शिखर पर पहुंची है। भाजपा राजनीति में एक कदम आगे की रणनीति बनाने के लिए जानी जाती है। उन्होंने कहा मेरा मानना है कि पार्टी भी इसी दिशा में मंथन कर रही होगी। और सारे राजनीतिक मिथकों को तोड़कर प्रदेश में भाजपा फिर से सरकार बनाएगी।
गुजरात चुनाव में विजयी पताका फहराने के बाद भाजपा में मध्यप्रदेश के लिए चुनाव की रणनीति तय की गई थी। इस रणनीति में अनुसूचित जनजाति के वोटर को लुभाने, अनुसूचित वर्ग के वोटों के बंटवारे पर भाजपा का पूरा फोकस है। साथ ही भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करने के लिए च्बूथ जीता, चुनाव जीताज् का नारा दिया था। रणनीति क्रियांवयन की शुरुआत भी बूथ से की गई, लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद राजनीतिक समीकरण और मुद्दे बदले हैं। कर्नाटक चुनाव में हिंदुत्व का मुद्दा नहीं चला है। प्रदेश में चलेगा या नहीं, इसको लेकर भी नेताओं के अलग- अलग मत हैं।
चुनाव विश्लेषकों का मानना है वर्ष 1967 के बाद 56 वर्षों में प्रदेश में ऐसा पहला चुनाव होगा, जो व्यक्ति आधारित होगा। 1967 में मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से राजमाता विजयाराजे सिंधिया नाराज हो गईं थीं। इसके बाद गोविंद नारायण मिश्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। वही स्थिति अब है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पौते ज्योतिरादित्य सिंधिया की कमल नाथ और दिग्विजय सिंह से तकरार होने से दोबारा यह स्थिति निर्मित हुई है।