मप्र में कैसे रूकेगा अवैध शराब का धंधा
भोपाल । मप्र के सबसे कमाऊ विभागों में शामिल आबकारी विभाग को अमले की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसका असर यह हो रहा है अवैध शराब के गोरखधंधे पर विभाग नकेल नहीं कस पा रहा है। हालांकि गत वर्ष सरकार ने आबकारी विभाग में 200 कांस्टेबल की भर्ती निकाली थी। उसके बाद भी विभाग में आधे पद खाली पड़े हैं। इसका असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ रहा है। मप्र में देशी और विदेशी शराब दुकानों की नीलामी के जरिए सरकार को हर साल 12 से 13 हजार करोड़ का टैक्स मिलता है। इसके बावजूद प्रदेश में अवैध शराब की बिक्री पर आबकारी अमला रोक लगा पाने में नाकामयाब है। खासकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान तो करोड़ों लीटर अवैध शराब पकड़ी जाती है, लेकिन सरकार को आबकारी अमले में भर्ती करने की कतई चिंता नहीं रहती।
विगत वर्ष हुए विधानसभा और वर्तमान में चल रहे लोकसभा चुनाव में पकड़ी गई शराब इस बात का संकेत हैं कि मप्र में अवैध शराब का कारोबार किस तरह बेखौफ चल रहा है। वहीं होटलों-ढाबों में बिना लाइसेंस के शराब परोसी जा रही है। अगर आबकारी विभाग के पास पूरा अमला होता तो ऐसी स्थिति निर्मित ही नहीं होती। करीब 12-13 हजार करोड़ की राजस्व कमाई करने वाले आबकारी विभाग में अमले को टोटा बना हुआ है। ऐसे में विभाग के सामने अवैध शराब के धंधे को रोकने की चुनौती है। वहीं राजस्व आय को बरकरार रखना भी टेढ़ी खीर लग रही है। जानकारी के अनुसार आबकारी विभाग में करीब 50 फीसदी अमला नहीं होने की वजह से अवैध शराब की बिक्री पर रोक लगा पाना मुश्किल लग रहा है।
एक के पास कई प्रभार
अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से जिलों में एक व्यक्ति के पास दो से तीन प्रभार हैं। वर्तमान में 157 जिला आबकारी अधिकारी, 289 उपनिरीक्षक, 117 मुख्य आरक्षक सहित अन्य संवर्ग के भी ढेरों पद खाली पड़े हुए हैं। आबकारी अधिकारियों का कहना है कि फील्ड और दफ्तरों में खाली पदों के कारण विभाग में कुछ दिक्कतें हैं। अभी भर्ती के लिए भी कोई प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की गई है। आरक्षकों की कमी को दूर करने होमगार्ड जवानों की सेवाएं ली गई हैं। जल्द विभाग में भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी। जो अमला कार्य कर रहा है, उसके पास भी एक से अधिक प्रभार है। उपनिरीक्षक नहीं होने से फील्ड में प्रकरण भी दर्ज होने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यालय भी भी कर्मचारियों की कमी है। प्रदेश सरकार ने 3 अगस्त 2021 में जहरीली शराब पीने से किसी व्यक्ति की मृत्यु होने और इस अपराध के लिए व्यक्ति के दोषी पाए जाने वा आजीवन कारावास या मृत्युदंड सहित न्यूनतम 20 लाख रुपए के जुमार्ने का प्रावधान किया गया है। हालांकि इसके बाद से अब तक इस मामले के किसी आरोपी को मृत्युदंड की सजा नहीं सुनाई गई है।
विभाग के पास उपायुक्त भी नहीं
मप्र में शराब बंदी की पैरवी करने वाली पूर्व सीएम उमा भारती के प्रयासों के बावजूद इस पर रोक नहीं लग सकी। वहीं, अवैध शराब की बिक्री पर सख्ती से रोक लगाने और जहरीली शराब बेचेन वालों के लिए कड़ा कानून लागू करने वाले तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान भी आबकारी अमले में भर्ती नहीं करवा सके। स्थिति यह है कि आज अमले में 50 फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं। ग्वालियर मुख्यालय में उपायुक्त के तीन पद स्वीकृत हैं और तीनों खाली हैं। इधर, भोपाल उडऩ दस्ते में एक पद स्वीकृत है, लेकिन दो अधिकारी काम कर रहे हैं। आबकारी विभाग में नया सेटअप 2017 में लागू किया गया था, इसके तहत आयुक्त और अपर आयुक्त आबकारी का पद आईएएस तथा आईपीएस से भरा जाता है। संभागीय मुख्यालयों पर उपायुक्त आबकारी का एक- एक पद स्वीकृत है। इनमें ग्वालियर, भोपाल, सागर, रीवा, जबलपुर, इंदौर तथा उज्जैन शामिल हैं। संभागीय उपायुक्त का पद केवल इंदौर और उज्जैन में भरा हुआ है। भोपाल स्थित राज्य स्तरीय उडऩदस्ता में उपायुक्त का एक पद स्वीकृत है, लेकिन यहां दो उपायुक्त काम कर रहे हैं। विभाग में सहायक जिला आबकारी अधिकारी के 262 पद स्वीकृत है, इसके विपरीत 157 अधिकारी कार्यरत हैं और 105 पद खाली हैं। आबकारी उपनिरीक्षक के अमले में 531 पद स्वीकृत हैं, इनमें 289 कार्यरत हैं और 233 पद खाली हैं। आबकारी मुख्य आरक्षक के 316 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 117 मुख्य आरक्षक कार्यरत हैं और 199 पद खाली हैं। आरक्षक के 1023 पद मंजूर हैं और 540 आरक्षक कार्यरत हैं, जबकि 483 पद खाली है। इससे खराब स्थिति तो अन्य संवर्ग के पदों की है। आबकारी आयुक्त अभिजीत अग्रवाल का कहना है कि अभी लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी हुई है, इस कारण पदों पर भर्ती होना संभव नहीं है। पदोन्नति पर रोक लगी होने की वजह से उच्च पदों पर प्रभार देने का प्रस्ताव है, उसे भी रोस्टर के तहत चुनाव बाद ही लागू किया जाएगा। विभाग के पास पर्यात अमला नहीं होने की वजह से अवैध शराब की बिक्री और जहरीली शराब बेचने वाले माफिया पर अंकुश लगा पाना मुश्किल दिख रहा है। खासकर पिछले साल शराब दुकानों की नीलामी के समय दुकानों का संचालन करने होम गार्ड की सेवाएं ली गई थी। चुनाव व के के दौरान तो पुलिस और संयुक्त टीम धरपकड़ करती है, जिसमें करोड़ों की अवैध शराब पकड़ी जाती है।