नई दिल्ली । भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन में संघर्ष से निपटने का सर्वश्रेष्ठ तरीका ‘‘लड़ाई रोकने और वार्ता करने पर’’ जोर देना होगा। संकट पर भारत का रुख इस तरह की किसी पहल को आगे बढ़ाना है। परिचर्चा सत्र में सवाल के जवाब में उन्होंने यह कहा। जयशंकर ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई पर भारत के रुख की आलोचना का विरोध करते हुए कहा था कि पश्चिमी शक्तियां पिछले साल अफगानिस्तान में हुए घटनाक्रम सहित एशिया की मुख्य चुनौतियों से बेपरवाह रही हैं। उन्होंने कहा, हमने यूक्रेन मुद्दे पर कल काफी वक्त बिताया और मैंने न सिर्फ यह विस्तार से बताने की कोशिश की कि हमारे विचार क्या हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि हमें लगता है कि आगे की सर्वश्रेष्ठ राह लड़ाई रोकने, वार्ता करने और आगे बढ़ने के रास्ते तलाशने पर जोर देना होगा। हमें लगता है कि हमारी सोच, हमारा रुख उस दिशा में आगे बढ़ने का सही तरीका है।’’
उल्लेखनीय है कि भारत ने यूक्रेन पर किए गए रूसी हमले की अब तक सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं की है, वार्ता एवं कूटनीति के जरिये संघर्ष का समाधान करने की अपील करता रहा है। जयशंकर ने कहा कि भारत की आजादी के बाद के 75 वर्षों के सफर के बारे में चर्चा की और इस बात को रेखांकित किया कि देश ने दक्षिण एशिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने में किस तरह से भूमिका निभाई है। विदेश मंत्री ने मानव संसाधन और विनिर्माण पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने का जिक्र कर कहा कि विदेश नीति के तहत बाहरी सुरक्षा खतरों पर शायद ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जयशंकर ने इस सवाल पर कि अगले 25 वर्षों की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए, कहा कि सभी संभावित क्षेत्रों में क्षमता निर्माण पर मुख्य रूप से जोर होना चाहिए।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम कौन हैं, इस बारे में हमें आश्वस्त रहना होगा। मुझे लगता है कि हम कौन हैं... इस आधार पर विश्व के देशों से बात करना बेहतर होगा। उन्होंने उम्मीद जाहिर कि भारत अपनी प्रतिबद्धताओं, जिम्मेदारियों और अगले 25 वर्षों में अपनी भूमिकाओं के संदर्भ में अत्यधिक अंतरराष्ट्रीय होगा। यह पूछे जाने पर कि भारत विश्व से क्या उम्मीद करता है। जयशंकर ने कहा, ‘‘हमारी विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला के बारे में काफी बातें की जाती हैं और लोग पारदर्शिता एवं कसौटी पर खरी उतरी प्रौद्योगिकी के बारे में बात करते हैं। भारत और भी कार्य कर सकता है और शेष विश्व को प्रदर्शित कर सकता है कि भारत से विश्व को कहीं अधिक लाभ हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आज वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र है...तब मुझे लगता है कि कहीं न कहीं इसका श्रेय भारत को जाता है। उन्होंने कहा कि पीछे मुड़कर यह देखना भी जरूरी है, कि देश किस क्षेत्र में पीछे छूट गया। उन्होंने कहा, ‘‘एक तो यह कि, स्पष्ट रूप से हमने अपने सामाजिक संकेतकों, हमारे मानव संसाधन, जैसा कि होना चाहिए था, पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दूसरा यह कि, हमने विनिर्माण और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, जैसा कि करना चाहिए था। और तीसरा यह कि, विदेश नीति के संदर्भ में, विभिन्न रूप में, हमने बाह्य सुरक्षा खतरों पर उतना ध्यान नहीं दिया, जितना कि हमें देना चाहिए था।’’