राष्ट्रपति पद के दावेदार पिता यशवंत का नहीं द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे रहे जयंत सिन्हा
नई दिल्ली । राष्ट्रपति चुनाव में इस बार मुख्य मुकाबला द्रौपदी मुर्मू बनाम यशवंत सिन्हा के बीच होने जा रहा है। ओड़िशा की पूर्व मंत्री एवं झारखंड की राज्यपाल रह चुकी द्रौपदी मुर्मू एनडीए उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगी, वहीं यूपीए और कुछ अन्य विरोधी दलों ने मिलकर संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर यशवंत सिन्हा को संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है। विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का भाजपा से गहरा और लंबा रिश्ता रहा है और उनके बेटे जयंत सिन्हा, वर्तमान में भी झारखंड के हजारीबाग से लोकसभा सांसद हैं। पिता यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके हैं, वहीं पुत्र जयंत सिन्हा मोदी की एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके बाद यशवंत को विपक्षी दलों द्वारा उम्मीदवार घोषित करने के बाद से ही यह कयास लगने लगे थे कि उनके पुत्र जयंत सिन्हा अब क्या करेंगे? क्या जयंत सिन्हा बतौर सांसद, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए अपने पिता को वोट देंगे या फिर अपनी पार्टी भाजपा का साथ देंगे?
जयंत ने अपना वीडियो बयान जारी करते हुए कहा, "विपक्ष द्वारा मेरे आदरणीय पिता जी यशवंत सिन्हा जी को राष्ट्रपति हेतु प्रत्याशी घोषित किया गया है। इस घोषणा के बाद से ही लोग और मीडिया मुझसे सवाल कर रहे हैं। मैं आप सबसे यही निवेदन करूंगा कि इस समय मुझे आप एक पुत्र के रूप में न देखें, इस एक पारिवारिक मामला न बनाएं। जयंत ने पिता की बजाय पार्टी के प्रति अपने दायित्वों को निभाने की बात कहते हुए कहा, "मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं, हजारीबाग से भाजपा का सांसद हूं। मैं अपने संवैधानिक दायित्वों को समझता हूं और इस पूरी तरह से निभाऊंगा।"
द्रौपदी मुर्मू को एनडीए उम्मीदवार बनाने के लिए पार्टी आलाकमान के प्रति आभार जताकर जंयत ने अपने अगले ट्वीट में लिखा, "द्रौपदी मुर्मू जी को एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाए जाने पर हार्दिक बधाई। उनका जीवन सदैव जनजातीय समाज व गरीब कल्याण हेतु समर्पित रहा है। इस निर्णय हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का हार्दिक अभिनंदन व आभार। बता दें कि, राष्ट्रपति चुनाव में सांसद या विधायक स्वेच्छा से किसी भी उम्मीदवार को वोट कर सकता है, क्योंकि इस चुनाव में राजनीतिक दलों के व्हिप का नियम लागू नहीं होता है।