नई दिल्ली। भारतीय टेक्टोनिक प्लेट दो टुकड़ों में बंट रही है। एक हिस्सा चीन के नीचे जा रहा है। दूसरा हिस्सा पाताल में। इस वजह से हिमालय में और हिमालय से बड़ा भूकंप आने की पूरी आशंका है। अगर ऐसा होता है तो भारी तबाही होगी। भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, तिब्बत और भूटान जैसे देशों में बड़ी आपदा आएगी।
 भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से हिमालय बना है। अब भारतीय प्लेट का एक हिस्सा यूरेशियन प्लेट के अंदर धंस रहा है। यानी भारतीय प्लेट दो हिस्सों में बंट रही है। पहला हिस्सा तो यूरेशियन प्लेट के अंदर है। दूसरा हिस्सा धरती के मेंटल में जा रहा है। यानी पाताल की तरफ। डिलैमिनेशन वाला दरार करीब 100 से 200 किलोमीटर लंबी है। जहां तेजी से मेंटल का बहाव भी दिखाया जा रहा है। वह भी भारतीय प्लेट की तरफ है। यह सब ऊर्जा के तेज बहाव पैदा कर रहे हैं। बहुत सारी एनर्जी इनसे निकल रही है। साथ ही स्टोर हो रही है। ये एनर्जी जब तेजी से निकलती है तगड़े भूकंप आते हैं। इसी एनर्जी की वजह से हिमालय की ऊंचाई हर साल बढ़ रही है। ऊपर इनकी गति कम दिखती है लेकिन जमीन के अंदर जंग चल रही है।
भारतीय टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट का टकराव 6 करोड़ साल पहले शुरू हुआ था। उसके पहले भारत एक आईलैंड यानी द्वीप था। जो जाकर यूरेशिया से भिड़ गया। जब दो जमीनें एकसाथ टकराए तो हिमालय का निर्माण हुआ। जमीन के ऊपर हिमालय बना और अंदर रहस्य बनते रहे।  वैज्ञानिकों का मानना है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे जा रही है। जिसके दबाव से यह दो टुकड़ों में रही है। इसे डीलैमिनेशन कहते हैं। लेकिन ऊपरी हिस्सा यानी यूरेशियन प्लेट ऊपर उठ रहा है। फैल रहा है। इससे हिमालय की ऊंचाई बढ़ रही है। जियोडायनेमिसिस्ट डुवे वान हिंसबर्गेन कहते हैं कि हमें अब तक नहीं पता है कि दो महाद्वीप आपस में किस तरह से व्यवहार करते हैं। लेकिन बेहद डरावना और हैरान करने वाला है। अगर यह दरार तेजी से बढ़ी तो हिमालय से और हिमालय में कई सारे भूकंप आ सकते हैं।
मोनाश यूनिवर्सिटी के जियोडायनेमिसिस्ट फैबियो कैपितानो ने कहा कि यह सिर्फ एक ट्रेलर है। पूरी फिल्म आनी बाकी है। हम स्टडी कर रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा जानकारी जमा कर सकें। हम भूगर्भीय अस्थिरता की स्टडी कर रहे हैं। अभी तक ऐसा देखने को नहीं मिला था कि कोई इतनी बड़ी टेक्टोनिक प्लेट दो हिस्सों में टूटी हो। जैसा भारतीय प्लेट के साथ हो रहा है। यह एक बेहद मोटी महाद्वीपीय प्लेट है, जिसे आप बड़ी चट्टानी परत भी बोल सकते हैं। यह पाताल में जा रही है।
एरिजोना यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट पीटर डेसेलेस ने कहा कि अगर भारतीय प्लेट के टूटने की स्टडी सही से करनी है तो हमें हिमालय की उत्पत्ति पर नजर रखनी होगी। शोध करनी होगी। हिमालय के 2500 किलोमीटर लंबे रेंज के नीचे की स्टडी करनी होगा। भारतीय प्लेट एक समान मोटाई या चौड़ाई वाली नहीं है। कहीं पतली है तो कहीं मोटी। यह लगातार यूरेशियन प्लेट में जा रही है। जो आकार में इससे बड़ी है। यूरेशियन प्लेट अपनी ताकत से इसे दबा रही है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के जियोफिजिसिस्ट साइमन क्लेमपरर ने कहा कि भारत की टेक्टोनिक प्लेट किसी कपड़े के टुकड़े की तरह है, जिसके धागों को चारों तरफ से खींचा और धकेला जा रहा है। भूटान के नीचे सबडक्शन जोन है। यहीं पर चीजें बुरी होती नजर आ रही हैं। जमीन के अंदर भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के साथ बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है।
तिब्बत की कई जगहों पर ऐसे जलस्रोत हैं, जहां पर हीलियम-3 आइसोटोप देखने को मिले। दक्षिणी तिब्बत के 1000 किलोमीटर में फैले 200 प्राकृतिक जलस्रोतों के सैंपल लिए गए। यानी जमीन के अंदर से हीलियम निकल कर बाहर आ रहा है। ऐसा भारतीय प्लेट के मेंटल की ओर जाने से हो रहा है। क्योंकि भूटान के पूर्वी सीमा की तरफ भी हीलियम निकलने की घटनाएं देखने को मिली हैं। यह बताता है कि भारतीय प्लेट दो टुकड़ों में टूट रही है।
भारतीय प्लेट का निचला हिस्सा लगातार मेंटल में धंस रहा है। यह प्रक्रिया तिब्बत के नीचे हो रही है। इस स्टडी को करने के लिए वैज्ञानिकों ने भारतीय और यूरेशियन प्लेट के टक्कर वाली जगह पर भूकंपीय तरंगें भेजीं। फिर उनसे मिले डेटा से यह स्टडी की। भूकंपीय तरंगों ने साफ बताया कि भारतीय प्लेट फट रही है। लेहाई यूनिवर्सिटी की सीस्मोलॉजिस्ट एनी मेल्त्जर कहती हैं कि भारतीय प्लेट के टूटने की घटना की जमीनी सतह से 200 किलोमीटर नीचे हो रही है। मेंटल वाले इलाके के पत्थर भारतीय प्लेट पर बहकर 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक आ चुके हैं। यह तय है कि अगले कुछ हजार सालों में इस इलाके में बड़े भौगोलिक बदलाव होने वाले हैं।
यह बात पूरी दुनिया को पता है कि भारतीय प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट को धकेल रही है। उत्तर की तरफ बढ़ रही है। वहीं तिब्बत के दक्षिण में 90 डिग्री नीचे लिथोस्फेयर-एस्थेनोस्फेयर बाउंड्री है। वहीं पर ये हलचल हो रही है। यारलंग-जांग्बो दरार से 100 किमी दूर उत्तर की तरफ दरारें बननी शुरू हुई हैं। ये तिब्बत के नीचे हैं।  पूर्व की तरफ भारत के नीचे का मेंटल के पास ग्रैविटी के असर से ऊपरी हिस्सा सेपरेट हो रहा है। यादोंग-गुलू और कोना-सांगरी रिफ्ट में हीलियम आइसोटोप की तीव्रता बढ़ी है। यानी धरती के केंद्र से हीलियम आ रहा है।  इसके अलावा इस इलाके में लगातार भूकंप आ रहे हैं। जिससे भारतीय टेक्टोनिक प्लेट और तेजी से टूट रही है।