चंबल में लगातार बढ रहा कछुओं का कुनबा
मुरैना । प्रदेश के मुरैना क्षेत्र में बहने वाली चंबल नदी में कछुओं का कुनबा लगातार बढता जा रहा है। विलुप्तप्राय ढोर व लाल तिलकधारी प्रजाति के कछुओं का वंश बढ रहा है। यहां कई ऐसी प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं, जो अन्य नदियों से सालों पहले विलुप्त हो चुके हैं। इसी कारण नदी का पानी स्वच्छ है, जिसमें अन्य जलीय जीवों का कुनबा भी बढ़ रहा है। चंबल नदी में कुल नौ प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं, इसमें सबसे विशेष वाटागुर डोंगोका कछुआ या थ्री स्टिप्ड रूफ टरटल (ढोर कछुआ) है, जिसके कवच पर तीन धारियां होती हैं। दूसरी विलुप्तप्राय प्रजाति वाटागुर कछुआ की है, जिसे गर्दन व सिर के ऊपर लाल व सफेद रंग की धारियों के कारण लाल तिलकधारी के नाम से जाना जाता है। इन दोनों को नदी का स्वच्छताकर्मी माना जाता है, क्योंकि ये प्रजाति नदी के पानी को दूषित करने वाले घास-फूस से लेकर मृत कीट, पतंगे व प्रदूषण बढ़ाने वाली मछली व अन्य जलीयजीवों को अपना आहार बनाती हैं। इसीलिए घड़ियाल अभयारण्य प्रशासन इन दोनों प्रजाति के कछुओं के संरक्षण पर जोर दे रहा है। इसके अलावा हरडेला धुरजी, टेंट टेरियन और सरकम डाटा कछुआ भी है, जिनके कवच से गोली भी पार नहीं जाती। कछुओें की चार प्रजाति निलसोनिया गेंजेटिका, लिसमस पंटाटा, निलसोलिया ह्यूरम और चित्रिका इंडिका नाजुक कवच वाले होते हैं। भिंड की सांकरी हेंचुरी में वाटागुर डोंगोका व लाल तिलकधारी कछुओं के 3500 अंडे सहेजकर रखे गए हैं, जिनसे इस मई-जून में बच्चे निकलेंगे। पिछले साल 7500 अंडों का संरक्षण किया गया था, जिनमें से निकले बच्चों को चंबल में छोड़ा गया। कछुओं के 200 बच्चों की परवरिश के लिए भिंड के बरही में कछुआ सेंटर बनाया गया है। दो साल की उम्र होने पर नदी में छोड़ा जाएगा। जलीय जीवों की जानकार ज्योति डंडोतिया बताती हैं कि नदी किनारे जहां-जहां रेत है वहां-वहां मादा कछुए अंडे देती हैं। श्योपुर के पाली से लेकर कतन्नीपुरा, रघुनाथपुर, नदीगांव, बटेश्वरा मुरैना में भर्रा, डांगबसई, राजघाट, गड़ौरा, टिकरी, रिठौरा, उसैद घाट से लेकर भिंड में बाबूसिंह का घेर, दलजीत का पुरा, अटेर, बरई और उप्र से सटे सांकरी तक नदी किनारे रेत में भरपूर अंडे पाए जाते हैं। मादा कछुआ फरवरी-मार्च में रेत के नीचे गड्ढे बनाकर उनमें अंडे देती हैं, जिनसे मई के अंत या जून में अंडे निकलते हैं। एक मादा कछुआ 20 से 25 अंडे देती है। इस बारे में चंबल घड़ियाल अभयारण्य के डीएफओ स्वरूप दीक्षित का कहना है कि चंबल नदी में कभी कछुओं की गणना नहीं हुई, लेकिन नदी में हर जगह कछुओं की मौजूदगी, प्रजनन के लिए मिलने वालों अंडों की संख्या से स्पष्ट है कि चंबल में बहुत अच्छी संख्या में कछुए हैं। वाटागुर डोंगोका व वाटागुर कछुए अधिकांश नदियों से लगभग विलुप्त हो चुके हैं, लेकिन ये चंबल में अच्छी संख्या में पाए जाते हैं।