भाजपा-कांग्रेस में प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल शुरू हो गया है। भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही दलों के नेता अपनी हैसियत को बताने और उम्मीदवारी तय कराने के लिए दबाव की राजनीति का दांव चल रहे हैं। राज्य में इसी साल विधानसभा का चुनाव होना है। फिलहाल राज्य के दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस को सत्ता का रास्ता आसान नजर नहीं आ रहा है, इस स्थिति से तमाम राजनेता भी बेहतर तरीके से वाकिफ हैं। जो विधानसभा का खुद चुनाव लडऩा चाहते हैं या अपने करीबियों को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, उन्होंने अभी से दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
लिहाजा वे अपनी उम्मीदवारी तय कराने के मामले में पीछे नहीं रहना चाहते। इस स्थिति में उन्हें सबसे बेहतर तरीका पार्टी पर दाव बनाना नजर आ रहा है। यही कारण है कि तमाम राजनेता दबाव के हथियार का इस्तेमाल करने में पीछे नहीं हैं। इस दबाव की राजनीति पर गौर करें तो सबसे पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी का आता है। उन्होंने अपने इलाके के भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया। फिर उसके बाद कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया।
दीपक जोशी वह पहला नाम है जिसने दलबदल किया है। इसके अलावा भाजपा में कई और नेता हैं जो लगातार दबाव की राजनीति पर काम कर रहे हैं। बीच-बीच में उनके बयान भी आ जाते हैं जो पार्टी को मुश्किल में डालने का काम करते हैं। इस मामले में पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा, पूर्व मंत्री अजय विश्नोई, अनूप मिश्रा जैसे कई नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। एक तरफ जहां भाजपा अपने नेताओं की दबाव वाली राजनीति से परेशान है तो दूसरी ओर कांग्रेस की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। अभी हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यप्रकाश सखवार ने भाजपा का दामन थामा है। कई और भी नेता हैं जो दबाव की राजनीति पर काम कर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के बगावती तेवर अपनाने वाले नेताओं पर बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और आप की खास नजर है। ये तीनों ही दल ऐसे नेताओं पर दांव लगाने का मन बना रहे हैं, जिनका जनाधार है और साथ में जो बगावत के लिए तैयार हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा जहां असंतुष्ट नेताओं को मनाने की अभियान में लगी हुई है। वहीं, कांग्रेस की ओर से भी असंतोष को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। कुल मिलाकर दोनों ही दलों के सामने असंतुष्ट नेता बड़ी चुनौती बन सकते हैं और उनके सियासी गणित को भी बिगाड़ सकते हैं। यही कारण है कि दोनों दलों के लिए विरोधी से ज्यादा अपनों के बड़ी मुसीबत बनने की आशंका सता रही है।