दिल्ली में मुफ्त बिजली योजना रोकना चाहती है भाजपा....
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच तनातनी थमने का नाम नहीं ले रही है। ताजा टकराव दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के नए चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर है।
इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार की बिजली मंत्री आतिशी ने आज गुरुवार को कहा कि कल रात 10 बजे भाजपा शासित केंद्र सरकार ने लोकतंत्र की हत्या करने के लिए आम आदमी पार्टी की चुनी हुई सरकार पर एक और हमला किया है।
उन्होने कहा कि रात के अंधेरे में एक और अधिसूचना जारी कर गैरकानूनी व असंवैधानिक तरीके से डीईआरसी के चेयरमैन की नियुक्ति कर दी गई। यह दिल्ली की बिजली व्यवस्था को ध्वस्त करने, सस्ती और मुफ्त बिजली रोकने के लिए है।
भाजपा दिल्ली को बिजली आपूर्ति के मामले में नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम जैसा बनाना चाहती है, जहां बिजली कटौती की गंभीर समस्या है। केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार को लेकर पिछले कई वर्षों से अदालत में लड़ाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि भूमि, कानून व्यवस्था और पुलिस के अलावा अन्य विषयों पर निर्वाचित सरकार का सलाह बाध्यकारी है।
21 जून को दिल्ली सरकार द्वारा डीईआरसी के चेयरमैन के लिए राजस्थान हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संगीत लोढ़ा का नाम एलजी को भेजा गया। इसे नहीं मानते हुए उमेश कुमार को चेयरमैन बना दिया। यह असंवैधानिक व दिल्ली के लोगों के खिलाफ फैसला है। यह दिल्ली के लोगों को परेशान करने के लिए है। दिल्ली के लोग प्रत्येक बार अरविंद केजरीवाल को भारी बहुमत से सत्ता में भेजते हैं। भाजपा को लगता है कि यह दिल्ली के लोगों की सबसे बड़ी गलती है।
दिल्ली में सबसे सस्ती बिजली मिलती है। 300 यूनिट तक बिना सब्सिडी दिल्ली में बिजली की दर प्रति यूनिट 4.50 रुपये है।
असम में 300 यूनिट तक 8.20 रुपये प्रति यूनिट, उत्तर प्रदेश में 6.50 रुपये, मध्यप्रदेश में 6.20 रुपये और महाराष्ट्र में 10 रुपये प्रति यूनिट बिजली मिलती है।
केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने से पहले दिल्ली में प्रत्येक छह माह में बिजली के बिल बढ़ जाते थे। आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद 2015 से 2023 तक बिजली की दरें नहीं बढ़ी।
दिल्ली में 41 लाख परिवारों को मुफ्त बिजली मिलती है।
भाजपा दिल्ली में 24 घंटे बिजली आपूर्ति रोकने, 41 लाख परिवारों को मुफ्त बिजली रोकने, भाजपा शासित राज्यों की तरह महंगी बिजली देने के लिए काम कर रही है।
इस गैरकानूनी फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार लड़ाई लड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।