नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में तीन बड़े बदलाव होने जा रहे हैं। केंद्र सरकार, सेना और स्थानीय प्रशासन स्तर पर तैयारी शुरू हो चुकी है। पहला बदलाव राज्य से आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) हटाकर होगा। बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसके संकेत दिए थे। दूसरा, जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा। जमीनी स्तर पर इसकी रणनीति बन गई है। तीसरा, 30 सितंबर के पहले राज्य में विधानसभा चुनाव कराना। यानी सरकार की कमान स्थानीय लोगों के हाथ आ जाएगी।
सबसे ज्यादा फोकस एएफएसपीए हटाने पर है। इसके लिए सेना राज्य सशस्त्र पुलिस को एंटी टेरर ऑपरेशन्स के लिए तैयार कर रही है। पुलिस के 1100 इंस्पेक्टरों को डोडा के बार्ला में सेना के बैटल स्कूल में ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्हें सेना की तरह खुफिया सूचनाओं का विश्लेषण, उन्हें साझा करने और इलाकों की घेराबंदी करना सिखाया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार का जम्मू-कश्मीर पुलिस पर भरोसा इसलिए बढ़ा, क्योंकि वो सेना के साथ कई ऑपरेशन में साथ काम कर रही है। बहादुरी के लिए मिलने वाले कीर्ति और शौर्य चक्र पुलिसकर्मी हासिल कर रहे हैं। एक साल में 80 पुलिसकर्मियों को शौर्य पदक मिले हैं। जबकि प्रदेश स्तर पर 424 पुलिसकर्मियों को एंटी टेरर ऑपरेशन के लिए सम्मान मिल चुका है।
सूत्रों के मुताबिक,एएफएसपीए हटने के बाद राज्य में सेना की जगह राष्ट्रीय राइफल्स की 4-4 कंपनियां रखी जा सकती हैं। राष्ट्रीय राइफल्स सेना से प्रतिनियुक्ति के आधार पर गठित हैं। इसमें 63 बटालियन हैं। इन्हें 100 से 150 सैनिकों की 4-4 कंपनियों में तैनात किया जा सकता है। यहां तैनात सेना के सवा लाख जवानों को पाक-चीन बॉर्डर शिफ्ट किया जा सकता है।